वनस्थली में सर्वांग–सम्पूर्ण शिक्षा देने की दृष्टि से एक विशिष्ठ शिक्षा योजना का निर्माण किया गया है। यह शिक्षा योजना वनस्थली की पंचमुखी शिक्षा है। इसके पाँच अंग है–शारीरिक, व्यवहारिक, कला–विषयक, नैतिक और बौद्धिक।
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शारीरिक शिक्षा: इसके अन्तर्गतविभिन्न प्रकार के व्यायाम (जैसे-तलवार, भाला, बन्दूक चलाना, सैनिक कवायद आदि); नाना प्रकार के आधुनिक और पुराने खेल व स्पोटर्स (जैसे- कबड्डी, खो-खो, हॉकी, बास्केटबॉल, बैडमिटन, लॉग जम्प, हाई जम्प आदि); रेन्जिंग, गर्ल–गाइडिंग, बुलबुल तथा घुडसावारी एवं तैरना सिखाने की व्यवस्था की जाती है। यौगिक आसन सिखाने का भी प्रबन्ध है।
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व्यवहारिक शिक्षा: इसके अन्तर्गत गृहस्थ शिक्षा, रंगाई-छपाई (सांगानेरी), बाटिक का काम, सिलाई व कशीदा, खिलौने बनाना, पेपेरमेशी, क्राफ्ट, क्ले माडलिंग आदि शामिल है। सभी छात्राएँ अपने कमरों की सफाई और अपनें बर्तनों की साफ सफाई स्वयं करती है और एक हद तक अपने कपड़े भी स्वयं धोती है। सामुहिक श्रम का आयोजन भी किया जाता है।
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कला-विषयक शिक्षा: कक्षा 1 से 5 तक संगीत और चित्रकला दोनों और बाद में कक्षा 10 तक संगीत (गायन या सितार) या चित्रकला में से किसी एक की शिक्षा की विद्यापीठ के शिक्षाक्रम में व्यवस्था है। नृत्य–शिक्षण की अलग व्यवस्था है।
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नैतिक शिक्षा: छात्राओं के नैतिक व्यक्तित्व का विकास करना तथा उनमें सर्व–धर्म–सम्भाव पैदा करना नैतिक शिक्षा का लक्ष्य है। यह शिक्षा उपदेशात्मक ढंग से नही दी जाती। सर्व–धर्म समन्वय की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए विद्यापीठ और छात्रावास में होने वाली सामुहिक प्रार्थनाएँ, साप्ताहिक बातचीत और वेद, गीता, रामायण, तथा दूसरे धर्म–ग्रथों आदी का पाठ, छात्रावास का बिना किसी भेदभाव के सामुहिक सम्मिलत जीवन और वातावरण की स्वच्छता, विद्यापीठ की नैतिक शिक्षा के प्रमुख साधन है। इस दृष्टि से विद्यापीठ की सामुहिक सायंकालीन प्रार्थना और उद् बोधन मन्दिर के कार्यक्रम विशेष रुप से उल्लेखनीय है।
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बौद्धिक: इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आज की प्रचलित शिक्षा–प्रणाली के दोषों से यहाँ की शिक्षा यथासंम्भव मुक्त रहे। भाषा और गणित के अतिरिक्त प्राकृतिक तथा सामाजिक ज्ञान की शिक्षा प्रारम्भ से दी जाती है। शिक्षण-पद्धति में सामाजिकऔर प्राकृतिक वातावरण, पर्व–समारोह और नाटक, चुने हुए विषय पर तैयार की जाने वाली प्रायोजना का यथावश्यक उपयोग किया जाता है। शिक्षा का एक मात्र लक्ष्य परीक्षाएँ उत्तीर्ण करना ही न रह जाए और शिक्षा व्यवहारिक जीवन से सम्बधित हो, इसका ध्यान रखा जाता है।